Sunday, November 29, 2015

Ghasiram Is Upset

 घासीराम है उदास
 Ghasiram Is Upset

भरी बरसात में सावन की
घासीराम है उदास।
गिरवीं रखे हैं उसके खेत और घर।

बटाईदारी के लिए नहीं है पैसा
पास उसके।

मन में कहीं कोई उल्लास नहीं है।
साधनहीन जीवन दीन-दुखी है।

पीड़ाओं के सर्प डस रहे हैं उसे।
साँसें उसकी जमीं जा रही हैं बर्फ के समान।

अन्न के अभाव में रख रहा है उपवास-
पूरा परिवार उसका।

सावन की पूर्णिमा के दिन
साहूकार का घर भरा हुआ है खुशियों से,
और घासी के घर में
जमी बैठी है उदासी,
भरी बरसात में सावन की।

In the chock-full rain of Sawan
Ghasiram is upset,
his house and fields are mortgaged.

No money he has 
for share-holding the farming.

No joy is left in him,
his life is underprivileged— dejected.

The snakes of agony are biting him.
His breath is freezing like snow.

His whole family keeps fast 
due to the shortage of food.

On the day of Sawan Purnima,
the money lender's house is bursting with joy,
and Ghasi's house is 
shrouded with sorrow,
in the chock-full rain of Sawan.


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